ऑडियंस और क्रिटिक की तरफ से मिले-जुले फाइनेंस मिले हैं।
अनिल कपूर, पता नहीं क्यों ‘मलंग’ में ‘किक’ वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जैसी हंसी बिखेरते नजर आते हैं। हालांकि उनकी उपस्थिति ने फिल्म का भला ही किया है।
- News18Hindi
- आखरी अपडेट:7 फरवरी, 2020, 6:53 PM IST
वास्तव में ‘मलंग’ के पहले से ही प्रशिक्षण में किया गया अपना वायदा प्लेती है। यहां किसी तरह का बनावटीपन नहीं है जिसका बॉलीवुड फिल्मकार आम तौर पर शिकार हो जाते हैं। मोहित सूरी ने दिशा के ग्लैमर को भी खूब भुनाया है। वो जब-तब समंदर से निकलती दिख जाती हैं। ठीक इसी तरह, आदित्य भी अपने बड़े-बड़े डौले दिखाते रहते हैं।
फीलम का म्यूजिक संगीत भी है। अनिल कपूर, जो की अपने आप को किलर कॉप कहलाना पसंद करते हैं, पता नहीं क्यों ‘किक’ वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी सी हंसी बिखेरते रहते हैं। हालांकि उनकी उपस्थिति ने फिल्म का भला ही किया है। वैसे उन्हें इस फ़िल्मम में और बेहतर की उम्मीद थी।
जो बात मलंग को खास बनाता है वह इसकी स्क्रीनप्ले है। चीजें इतनी उछाल गति से होती हैं कि दर्शक शायद आराम से कई कमियां नज़रअंदाज़ कर देंगे। ऊपर से मोहित सूरी के कौशल सायको किलर्स का भी अच्छा डोज है जो मेनस्ट्रीम मसाला फिल्मों में खप ही जाता है।
‘मलंग’ का ताना बाना वही पुराना रिवेंज ड्रामा का ही है जिसमें थोड़ी और चाशनी डालने की कोशिश की गयी है। इससे अगर कोई फायदा नहीं हुआ है तो नुकसान भी नहीं हुआ है। कुल मिलाकर आनंद तो आता है। 135 मिनट की बॉलीवुड फिल्म में इतना भी जाना कोई छोटी बात नहीं है।
मेरी तरफ से चटखदार संगीत और सजीले नौजवानों के दम पर चलती मलंग को मिलते हैं 5 में से 3 स्टार।
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